Saturday, May 23, 2009

बनें कार्टूनिस्ट

छुट्टियों में बन जाएं      कार्टूनिस्ट

सामान्यतः कार्टून दो प्रकार के होते हैं-मूक और सवाक या सम्वाद सहित। मूक कार्टून में किसी घटना या प्रसंग की रोचक प्रस्तुति देखने वाले को हंसा देती है। ऐसा सवाक कार्टून अच्छा माना जाता है जिसमें संवाद और चित्र एक-दूसरे के पूरक हों।
कार्टून बनाना आनन्द देने वाली कला है, जिसे सीखना बहुत आसान है। नियमित अभ्यास और मार्गदर्शन से आप स्वयं इस कला में पारंगत हो सकते हैं। तरह-तरह के चेहरे और नैन-नक्श बनाने का अभ्यास करें। अधिकांश बड़े कार्टूनिस्ट इसी प्रकार सफल हुए हैं।

सामग्री- साधारण सफेद कागज या न्यूजप्रिण्ट पेपर की स्कैच बुक, बी या 2बी नम्बर की मुलायम काली पेंसिल या क्लिक पेंसिल, अच्छी रबड़ और साफ मुलायम कपड़े का टुकड़ा लें। अब हलके हाथ से सबसे पहले आड़ी, खड़ी और विभिन्न कोणों पर मुड़ी, तिरछी और सीधी रेखाएं खींचने का खूब अभ्यास करें। फिर गोलाकार या वक्र रेखाएं खींचें। पेंसिल से किये गये इस अभ्यास को बाद काली वाटर प्रूफ स्याही, निब-होल्डर, ब्रश (1, 2 व 3 नम्बर), ड्रॉइंग पेन, बो पेन, क्रोक्विल, रैपिडोग्राफ (.3, .4 या .5 नम्बर), आदि में से 1-2 या सभी से यही अभ्यास करें पेंसिल, होल्डर या पेन कभी कसकर न पकड़ें और न ही कागज पर अधिक दवाब डालकर या गड़ाकर चलाएं।

चेहरे बनाएं- आमतौर पर सबके चेहरों की बनावट एक-दूसरे से भिन्न होती है। आरम्भ में गोल, अण्डाकार आदि चेहरे बनाने का अभ्यास करें। आंख, कान, मुंह आदि बनाएं। चेहरों को साइड पोज और विभिन्न कोणों से भी बनाएं। इसके लिए हलके हाथ से निर्देश रेखाएं भी खींचें। इन चेहरों पर मुस्कान, दुःख, हंसी, गुस्सा, खिसियाहट, आश्चर्य, शरारत, डर आदि भाव लाएं। ये भाव 1-2 रेखाओं के द्वारा आसानी से दिखाए जा सकते हैं। मूंछ, दाढ़ी, बाल, तिलक, चश्मा, तिल, मस्सा, पगड़ी आदि पहचान या प्रतीक चिह्न भी बनाएं।

अपने आसपास के लोगों, वस्तुओं, दृश्यों आदि को ध्यान से देखने की आदत डालें। इनको देखकर और बाद में स्मृति के आधार पर बनाने का अभ्यास करें। कार्टून बनाने के साथ-साथ वास्तविक चित्रण का अभ्यास (स्कैचिंग) भी करते रहें। ये कार्य कार्टून बनाने में उपयोगी सिद्ध होंगे।
निर्देश रेखाएं- चेहरा, पूरी आकृतियां और सभी वस्तुओं, उनकी गतिशीलता के चित्रण में निर्देश रेखाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये रेखाएं बहुत हलके हाथ से खींचनी चाहिए ऐसा करने से कार्टून को अन्तिम रूप देने के बाद इन्हें रबड़ से मिटाने में आसानी होगी। निर्देश रेखाओं के उपयोग से आप अपने पात्रों की सही वेशभूषा और अन्य वस्तुएं भी अच्छी तरह बना सकते हैं। कार्टून में एक से अधिक पात्र साथ-साथ बनाने पर उनके सही आकार व बनावट का ध्यान रखना चाहिए। ऐसा न हो कि बच्चा पिता से बड़ा बने या हाथी से बड़ा कुत्ता दिखे।

सामान्यतः कार्टून दो प्रकार के होते हैं-मूक और सवाक या सम्वाद सहित। मूक कार्टून में किसी घटना या प्रसंग की रोचक प्रस्तुति देखने वाले को हंसा देती है। ऐसा सवाक कार्टून अच्छा माना जाता है जिसमें संवाद और चित्र एक-दूसरे के पूरक हों। कार्टून के लिए सही आकार का बॉक्स या आयत बनाकर उसके ऊपरी भाग में सम्वाद की जगह छोड़, उसमें रेखाएं खींचकर पेंसिल से सम्वाद लिख दें। फिर निर्देश रेखाओं के उपयोग से पात्र, उनके उचित हावभाव, पहनावा, दृश्य आदि बनाएं। फिर काली स्याही, पेन, होल्डर, ब्रश, या रेपिडोग्राफ का उपयोग कर कार्टून को अन्तिम रूप दें। स्याही सूखने पर पेन्सिल की रेखाओं को हलके हाथ से रबड़ से मिटा दें। कार्टून में काली स्याही से बनी अनावश्यक रेखाओं को मिटाने या ठीक करने के लिए सफेद या सुपर व्हाइट पोस्टर
कलर और ब्रश का उपयोग करें।

कार्टून का आकार- छपे हुए कार्टून मूल रूप से 2, 4 गुना या अधिक बड़े बनाये जरते हैं। इससे कार्टून साफ और अच्छे दिखते हैं तथा कार्टूनिस्ट को काम करने में सरलता होती है। इसी प्रकार आप कार्टून, कार्टून स्ट्रिप, कॉमिक आदि के लिए सही आकार का आयत या वर्ग बना सकते हैं। इसके चारों ओर 1.5 से.मी. खाली छोड़कर बाकी स्थान स्टील के स्केल और कटर या ब्लेड से काटकर अलग कर दें।

कार्टून स्ट्रिप और कॉमिक- आमतौर पर कार्टून स्ट्रिप में 2, 3 या 4 बॉक्स होते हैं और कॉमिक के एक पृष्ठ में 4, 6, 8 या 10 बॉक्स या दृश्य होते हैं। कॉमिक और कार्टून स्ट्रिप में कहानी व सम्वाद के अनुसार समानता लिए हुए पात्र, दृश्य आदि अलग-अलग कोणों से से क्रमवार ढंग से बनाए जाते हैं।

रंगीन कार्टून- कार्टून को अंतिम रूप देने के बाद मूल प्रति या उसकी फोटो
प्रति में सही रंग भरे जाते हैं। छपने पर अच्छे परिणाम के लिए फोटो कलर भरे जाते हैं। वाटर कलर, पेस्टल कलर, पोस्टर कलर आदि का उपयोग भी किया जाता है। कार्टून स्कैन कर उनमें कम्प्यूटर से भी रंग भरे जाते हैं। इसके लिए कम्प्यूटर के उपयोग का प्रशिक्षण ले लेना चाहिए।
अब देर किस बात की, कीजिए शुरूआत!
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कार्टूनपन्ना, कार्टूनकाल, मुस्कानदूत



छुट्टियों में बन जाएँ कार्टूनिस्ट
बाल पत्रिका नंदन में प्रकाशित


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Thursday, May 7, 2009

रोज़गार

कार्टूनिस्ट बनकर कमाइए धन और यश

अनेक लोगों के मस्तिष्क में कार्टून बनाने लायक विचार प्रायः आते रहते हैं। चूंकि वे कार्टून बनाना नहीं जानते सो रोजाना अनगिनत कार्टूनी विचारों की मृत्यु होती रहती है। आपकी रुचि कार्टून बनाने में और आप रेखांकन करते रहते हैं या करना चाहते हैं तो आपकी राह मुश्किल नहीं है। आप कार्टून कला में निपुण होकर इसे शौक, पार्ट टाइम या फुल टाइम व्यवसाय यानी करियर के रूप में अपना सकते हैं।

कला ही जीवन है-यह निश्चय ही आपने पढ़ा-सुना होगा। भूगोल, इतिहास, रसायन विज्ञान, गणित या किसी अन्य विषय के बारे में ऐसा नहीं कहा जाता। कला की महत्ता को काफी समय पहले ही पहचान कर इसके बारे में कहा गया है। व्यंग्यचित्र यानी कार्टून कला भी कला की एक महत्वपूर्ण विधा है। कार्टून कला के उपयोग के क्षेत्र को आज जैसा विस्तार मिला है वैसा पहले कभी नहीं मिला। लगभग हर उम्र के लोगों में कार्टून बेहद लाकप्रिय है। समाचार पत्र, पत्रिकाओं, चित्रकथाओं के अलावा टीवी, इण्टरनेट, एनीमेशन, प्रचार सामग्री, पैकेजिंग, पहचान चिन्ह आदि तमाम क्षेत्रों में कार्टून कला का ही बोलबाला है। विभिन्न कार्टून पात्र जनमानस में अपनी अच्छी पैठ बना चुके है।

अनेक लोगों के मस्तिष्क में कार्टून बनाने लायक विचार प्रायः आते रहते हैं। चूंकि वे कार्टून बनाना नहीं जानते सो रोजाना अनगिनत कार्टूनी विचारों की मृत्यु होती रहती है। आपकी रुचि कार्टून बनाने में और आप रेखांकन करते रहते हैं या करना चाहते हैं तो आपकी राह मुश्किल नहीं है। आप कार्टून कला में निपुण होकर इसे शौक, पार्ट टाइम या फुल टाइम व्यवसाय यानी करियर के रूप में अपना सकते हैं। अनेक कार्टूनिस्ट ऐसे है जो अच्छे पदों पर कार्य या व्यवसाय करते हुए कार्टून कला को अपनाए हुए हैं। अनेक लोग कार्टूनिस्ट के रूप में फुल टाइम या पार्ट टाइम नौकरी कर रहे हैं।

अधिकांश जानेमाने कार्टूनिस्ट बिना किसी विशेष प्रशिक्षण के निपुण हुए हैं। वैसे भी हमारे यहां कार्टून कला सिखाए जाने का समुचित और विशेष प्रबन्ध नहीं है। यही नहीं, हिन्दी में अच्छी पुस्तकों का भी अभाव है। कार्टून केद्रित पत्रिकाएं भी बहुत कम या कहें के बराबर हैं।

अच्छा कार्टूनिस्ट बनने के लिए वास्तविक चित्रण का ज्ञान होना और निरन्तर अभ्यास करना उपयोगी सिद्ध होता है। इसके लिए लिए किसी योग्य प्रशिक्षक या कला ज्ञाता से प्रशिक्षण लिया जा सकता है। किसी विद्यालय या कला विद्यालय में प्रवेश लेकर कला की विधिवत शिक्षा ली जा सकती है। कला विद्यालयों में प्रायः पेण्टिंग, शिल्प (स्कल्पचर) और अनुप्रयुक्त कला (एप्लाइड आर्ट) 4 वर्षीय पाठ्यक्रम होता है। हर हाल में नियमित अभ्यास आपको ही करना होगा। चित्रकला और शरीर रचना (एनोटॉमी) सम्बन्धी अच्छी पुस्तकों को देखना-पढ़ना और अभ्यास करना चाहिए। अपने अवलोकन, फोटो, चित्र आदि की सहायता से रेखांकन करना चाहिए। सादा सफेद कागज पर 2बी या 4बी नम्बर की मुलायम काली पेंसिल हलके हाथ चलाते हुए निर्देशानुसार खूब अभ्यास करना चाहिए। बाद में छपे हुए कार्टूनों को देखकर पेंसिल से बनाएं और काली स्याही होल्डर, पेन, क्रोक्विल, बो पेन, ब्रश, या कलम आदि में से चुनें और उससे कार्टून बनाएं। छपने के लिए कार्टून भेजने से पहले कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है ताकि आपके सभी कार्टून खेद सहित वापस लौटें।

किसी कार्टून का आधार उसका विचार होता है। कार्टून एक या अधिक सम्वाद या किसी प्रसंग या घटना पर आधारित बिना सम्वाद वाला हो सकता है। हर कार्टूनी विचार को पॉकेट डायरी में तारीख के साथ लिखकर रख लें। अपने पास सदा एक पॉकेट डायरी और पेन या पेंसिल अवश्य रखें।याद रखिए, एक बार गया विचार फिर लौटकर नहीं आएगा। आवश्यकता और मांग के अनुरूप भी विषय या सामग्री आधारित कार्टून या कार्टून चित्र (इलस्ट्रेशन) बनाए जाते हैं।

कुछ लोग कार्टून को आड़ी-तिरछी रेखाओं की प्रस्तुति मानते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है। एक अच्छे कार्टून में किसी अच्छे चित्र की भांति ही कला के नियमों का ध्यान रख जाता है। कार्टन में वस्तु, पात्र, दृश्य या पृष्ठभूमि या वातावरण आदि का वास्तकि चित्रण की भांति ध्यान रख जाता है। इसके अलावा पात्र या वस्तुओं के वास्तविक जैसे काल्पनिक रूप, दृश्य या वातावरण, सही अनुपात, परिप्रेक्ष्य, आकार, संवाद, हावभाव, संतुलन आदि का पर्याप्त ध्यान रख जाता है। इसी प्रकार कार्टून में रंग भरते समय भी अनेक बातों का ध्यान रखा जाता है। इस प्रकार एक अच्छे विचार की कार्टून के रूप में सही प्रस्तुति की जा सकती है।

कार्टून कला में कम्प्यूटर का उपयोग भी खूब हो रहा है। एक कार्टूनिस्ट के लिए कम्प्यूटर और फ़ोटोशॉप, कोरल ड्रॉ, इलस्ट्रेटर आदि सम्बन्धित सॉफ्टवेयरों की जानकारी एक अतिरिक्त योग्यता होती है। हाथ से बनाए कार्टून को सकैन कर या कम्प्यूटर पर ही कार्टून बनाकर उसमें उचित रंग भरना और विशेष प्रभाव दर्शाना भी एक कला है। सभी कार्टून डाक द्वारा या कम्प्यूटर और इण्टरनेट का उपयोग करते हुए -मेल द्वारा भेजे जा सकते हैं। -मेल सेवा त्वरित और मुफ्त उपलब्ध है।

पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एक कार्टूनिस्ट को निर्धारित वेतनमान के अनेसार या मोलभाव के बाद अच्छा वेतन मिलता है। अनुबन्ध पर भी कार्टूनिस्ट रखे जाते हैं और पार्टटाइम भी। स्वतन्त्र रूप से कार्टून बनाने पर निर्धारित दर या तय राशि के अनुसार भुगतान किया जाता है। प्रायः कार्टून छपने के 1 से 3 माह के भीतर या कहीं-कहीं स्वीकृंति के साथ ही क्रॉस्ड चैक द्वारा भुगतान किया जाता है। भगतान का तरीका प्रकाशन या प्रतिष्ठान के नियमों के अनुसार ही होता है। अपने कार्य की फोटो कॉपी तारीख सहित अपने पास अवश्य रखनी चाहिए।

दैनिक समाचार पत्र के सम्पादकीय कार्टूनिस्ट के लिए कल्पनाशीलता, किसी सामयिक या समसामयिक घटना या प्रसंग पर त्वरित व्यंग्यात्मक टिप्पणी रेखाओं और आवश्यकतानुसार रंगों के उपयोग द्वारा व्यक्त करना, राजनीति और राजनीतिज्ञों के बारे में पर्याप्त जानकारी रखना, खबरों से नियमित रूप से जुड़े रहना, खूब पढ़ना आदि बातों का होना आवश्यक है।

वर्गीकरण के अनुसार कार्टूनों के प्रमुख प्रकार-


सम्पादकीय कार्टून- समाचार पत्रों के मुख पृष्ठ पर छपने वाले सामयिक-समसामयिक विषयों पर छपने वाले पाकेट कार्टून और 3, 4 या अधिक कॉलमों में छपने वाले बड़े कार्टून राजनीतिक या सम्पादकीय कार्टून कहलाते हैं।

सामान्य कार्टून और कार्टून स्ट्रिप- समाचार पत्र और विभिन्न पत्रिकाओं में छपने वाले गैर राजनीतिक यानी घरेलू, सामाजिक, व्यावसायिक आदि प्रकार के कार्टून और कार्टून स्ट्रिप सामान्य कार्टून और कार्टून स्ट्रिप होते हैं। ये 1, 2, 3 या अधिक फ्रेम वाले कार्टून होते हैं। इनमें सम्वाद और चित्रों या केवल चित्रों के माध्यम से कार्टूनिस्ट अपनी बात कहता है। एक से अधिक फ्रेम वाले कार्टूनों में पात्रों और वस्तुओं को अलग-अलग कोणें आकार में प्रस्तुत करने में उनकी एकरूपता का ध्यान रखा जाता है।

कॉमिक या चित्रकथा- प्रायः 28 या अधिक पृष्ठों में छपने वाली चित्रकथा में पूरी कहानी चित्र और सम्वादों के द्वारा प्रस्तुत की जाती है। प्रायः चित्रकथा की कहानी और पटकथा लेखक अलग-अलग व्यक्ति होते हैं। यदि कार्टूनिस्ट सक्षम है तो ये काम भी वह स्वयं कर लेता है। कॉमिक प्रायः रंगीन होते हैं। मूल चित्र छपे चित्रों की अपेक्षा कम से कम दो गुने बड़े आकार में बनाए जाते हैं।

इलस्ट्रेशन- किसी लेख कहानी या अन्य सामग्री को सचित्र और प्रभावशाली बनाने के लिए कार्टूनिस्ट से उपयुक्त चित्र बनवाया जाता है।

कैरीकेचर- यह व्यक्तिचित्र होता है जिसमें अक्सर उस व्यक्ति के गुण, कार्य या व्यवसाय, शौक आदि को भी व्यंग्यात्मक रूप में शामिल किया जाता है। कैरीकेचर बनाने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति के एकाधिक फोटो की सहायता लेकर इस प्रकार उसका व्यंग्यचित्र बनाया जाता है कि वह व्यक्ति आसानी से पहचाना जा सकता है।

कल्पनाशक्ति का उपयोग करते हुए उस व्यक्ति के चेहरे की बनावट को इस प्रकार तोड़मरोड़कर बदला जाता है कि वह वास्तविक चित्र नहीं रहता पर उसकी पहचान कायम रहती है। प्रायः राजनेताओं, बड़े वयवसाइयों और प्रद्धि व्यक्तियों के कैरीकेचर बनवाकर छापे जाते हैं।

एनीमेशन फिल्म- अधिकांश बच्चे ही नहीं बड़े भी एनीमेषन और कार्टून फिल्मों के दीवाने होते हैं। अनेक कार्टून पात्र उनके मन-मस्तिष्क पर राज करते हैं। 24 घण्टे चलने वाले अनेक कार्टून टीवी चैनल इसका प्रमाण हैं। विज्ञापन फिल्मों में भी कार्टून पात्रों का खूब उपयोग हो रहा है। एक कार्टून फिल्म बनाने में अनेक लोगों की
भूमिका होती है। इसके लिए काफी सूझबूझ, निपुणता और पश्रिम की आवश्यकता होती है। श्रम सस्ता होने के कारण हमारे यहां एनीमेशन का काम इतना बढ़ गया है कि आज के समय को एनीमेशन युग कहें तो गलत नहीं होगा। अनेक जानेमाने भारतीय फिल्म कलाकार एनमेशन फिल्में बनाने में जुट गये हैं। जगह-जगह एनीमेशन इंस्टीट्यूट खुल गये हैं।

वेबसाइट- विभिन्न वेबसाइटें और समाचार पोर्टल भी यिमित रूप से कार्टून छापते हैं या अन्य प्रकार से कार्टूनों का उपयोग करते हैं। एक कार्टूनिस्ट अपनी खुद की वेबसाइट बनाकर अपने कार्य के नमूने, पारिश्रमिक की दरें और अपना पूरा परिचय दशाकर देश-विदेश के लिए कार्य करके ना और दाम दोनों कमा सकता है। अपनी वेबसाइट को दैनिक, साप्ताहिक या अन्य प्रकार से अपडेट करते हुए असंख्य लोगों को अपने बारे में बताया जा सकता है। इसके बारे में किसी जानकार व्यक्ति से पहले पूरी जानकारी लेना ठीक रहता है।

सिण्डीकेटेड कार्टून सेवा- अपने बनाए कार्टूनों को देश-विदेश के अनेक पत्र-पत्रिकाओं को भेजने के लिए एजेंसी आरम्भ की जा सकती है। इसके माध्यम से अन्य कार्टूनिस्टों के कार्टन भी कमीशन के आधर पर भेजे जा सकते हैं। एक सिण्डीकेटेड कार्टून कई पत्र-पत्रिकाओं को बहुत कम दर पर भेजा जाता है। अतः छोटे-बड़े, हिन्दी-अंग्रेजी, राष्ट्रीय-क्षेत्रीय7सभी प्रकार के पत्र-पत्रिकाएं ऐसे कार्टून मंगाकर छाप सकते हैं। प्रायः हमारे यहां विदेशी कार्टून और कार्टून स्ट्रिप खूब छपती हैं।

रोजगार के अवसर- पत्र-पत्रिका पुस्तक प्रकाशन गृह, विज्ञापन एजेंसियां, वेबसाइटें, एनीमेशन कम्पनियां, एनीमेशन इंस्टीट्यूट, टीवी चैनल, ग्रीटिंग कार्ड कलेण्डर निर्माता आदि समय-समय पर विज्ञापन देकर कार्टूनिस्टों को बुलाते हैं। कल्पनाशील, समय के पाबन्द, कुशल, अनुभवी, व्यवहारकुशल आदि गुणों को ध्यान में रखते हुए कार्टूनिस्ट का चयन कर नियुक्त किया जाता है। वेतन या पारिश्रमिक पूर्वनिधारित के अनुसार या विशेष परिस्थितियों में अधिक भी दिया जाता है। एक कार्टूनिस्ट के रूप में आरम्भ में कुछ हजार रुपये प्रति माह कमाये जा सकते हैं। निपुणता और अनुभव प्राप्त करने के साथ-साथ अच्छे अवसारों का ध्यान रख जाए और अपने सम्पर्कों का उपयोग किया जाए तो जल्दी ही अच्छा अवसर मिल सकता है।

कार्टून- पहले विचार के अनुसार 2बी या 4बी नम्बर की काली मुलायम पेंसिल का उपयोग करते हुए सादा सफेद कागज पर रेखांकन किया जाता है। फिर काली वाटरप्रूफ स्याही और ब्रश, होल्डर, क्रोक्विल, पेन, बो पेन, रेपिडोग्राफ, कलम आदि में से एकाधिक का उपयोग करते हुए पर कार्टून बनाए जाते है। रबड़ से पेंसिल की
रेखाएं मिटा दी जाती है। आवश्यकतानुसार उनमें उपयुक्त रंग भरे जाते हैं। मूल कार्टून डेढ़-दो गुना बड़ा बनाया जाता है ताकि छपने के बाद वह साफ और अच्छा लगे। कार्टून के एक कोने में कार्टूनिस्ट सुपाठ्य रूप से अपना नाम या हस्ताक्षर अंकित करता है।

कार्टून के चारों ओर कागज पर 1 से.मी. या आधा इंच खली स्थान छोड़ना चाहिए। कार्टून के पीछे भी साफ अक्षरों में अपना पूरा नाम, पता, फोन नम्बर, -मेल आदि अवश्य लिखना चाहिए। एक बार में चुनकर 4-5 अच्छे कार्टून भेजने चाहिए। भेजे गये कार्टूनों का विवरण एक कॉपी या रजिस्टर में सुरक्षित रखना चाहिए और उनकी 1-1 फोटो कॉपी भी। अस्वीकृति की स्थिति में कार्टूनों की वापसी के लिए पर्याप्त डाक टिकट-पता युक्त लिफाफा अपने पत्र के साथ संलग्न करना चाहिए। प्रायः 15-30 दिन में स्वीकृति/अस्वीकृति की सूचना मिल जाती है। यदि देर हो जाए तो पूरे संदर्भ के साथ एक स्मरण पत्र भेजना चाहिए। कार्टूनों की स्वीकृति के बाद छपने पर 1-3 माह में नियमानुसार क्रॉस्ड चैक द्वारा भुगतान किया जाता है। कार्टून छपने पर पा्रयः सम्बन्धित पत्र-पत्रिका की लेखकीय प्रति भेजी जाती है पर उसके डाक में खो जाने की समस्या को ध्यान में रखते हुए स्वयं एक प्रति खरीद लेनी चाहिए।

कम्प्यूटर का उपयोग- कम्प्यूटर का उपयोग करने के लिए उसका आवश्यक प्रशिक्षण ले लेना चाहिए। यह काफी सुविधाजनक और उपयोगी है। इण्टरनेट के प्रयोग से अनेक अन्य सुविधाओं का लाभ मिल जाता है। -मेल का उपयोग बेहद आसान, मुफ्त और त्वरित है। अधिकांश जगहों पर इस सुविधा का उपयोग किया जा रहा है।

चित्रकला के विधिवत प्रशिक्षण के लिए समाचार पत्रों में समय-समय पर अखबारों में विज्ञापन छपते हैं। कला प्रशिक्षण और 4 वर्षीय डिग्री कोर्स बीएफए (बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स) करने के लिए महाविद्यालय-
- ललित कला महाविद्यालय (कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स), तिलक मार्ग, नयी दिल्ली-110001
- इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स एण्ड डिजाइन, चैन्नेई, तमिलनाडु
- सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स, दादा भाई नौरोजी रोड, मुम्बई, महाराष्ट्र
- फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट्स, एम.एस. यूनीर्विसटी, बड़ौदरा, महाराष्ट्र
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, पालदी, अहमदाबाद-380007, गुजरात

आपके आसपास स्थानीय या निकट के विद्यालय या कॉलेज में भी कला प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध हो सकती है, इस बारे में जानकारी प्राप्त कर लें। चाहें तो कला की बारीकियां जानने के लिए किसी कला शिक्षक की सेवाएं ले सकते है। इसके अलावा किसी प्रोफ़ेशनल कार्टूनिस्ट से भी सम्पर्क कर आवश्यक जानकारी और मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। भविष्य में भी उनके सम्पर्क में बने रहें।
कार्टूनपन्ना 

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कार्टून इंस्टीट्यूट झांकी

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